Tuesday, February 23, 2010

किस क़द्र सादा हैं हम

किस  क़द्र  सादा  हैं  हम,  कैसी  क़ज़ाएं  माँगें

दुश्मनों  से   भी   मुहब्बत   की  अदाएं  माँगें


हाल यह है कि हुआ पल का गुज़रना भी मुहाल

कितने  ख़ुशफहम  हैं,  जीने  की  दुआएं मांगें


इस क़दर क़हत मसीहाओं का पहले तो न था

अब   तो   बीमारों   से   बीमार  दवाएं   मांगें


उनके   अंदाज़   निराले   हैं   ज़माने   भर   से

ख़ुद  सितम  ढाएंगे  और  हम  से वफाएं मांगें


दल्के महनत पे सदा हमको रहा फ़क्र "हफ़ीज़"

हम  न   अग़यार   से   गुलरंग   कबाएं   मांगें

                                           -हफ़ीज़ सिद्दीक़ी
--------------------------------------------

मुहाल  :  कठिन
ख़ुशफ़हम  :  ख़ुशियों की आशाएं रखने वाला
क़हत  :  आकाल
दल्के  :  गुदड़ी
फ़क्र  :  गर्व
अग़यार  :  गैर
कबाएं  :  चादर, चोगा

Friday, January 29, 2010

एक ग़ज़ल

बूँद  पानी  की  हूँ  थोड़ी  सी  हवा  है  मुझ में

उस बिज़ाआत पे भी क्या ज़रफ़ा इना है मुझ में




ये  जो  एक  हश्‍र  शबो  रोज़  बपा  है  मुझ में


हो न हो  कुछ  और  भी  मेरे  सिवा  है मुझ में




सफ़ाए  दहर  पे  एक  राज़  की  तहरीर  हूँ मैं


हर  कोई पढ़ नहीं सकता जो लिखा है मुझ में




कभी शबनम की लताफत कभी शोले की लपक


लम्हा लम्हा  ये  बदलता  हुआ क्या है  मुझ में




शहर का शहर  हो जब  अरसाए  मेहशर की तरह


कौन  सुनता  है  जो  कोहराम  मचा  है  मुझ में




वक़्त ने कर दिया "साबिर"  मुझे  सहरा बा किनार


एक   ज़माने  में  समंदर  भी   बहा  है  मुझ  में


                                                   : साबिर
------------------------------------------------------------

बिज़ाअत  :  योग्यता
ज़रफ़ा  :  हौसला
इना  :  लगाम
हश्‍र  :  हालात
बपा  :  बीतना
सफ़ाए दहर : दुनिया के पन्ने 
तहरीर  :  लिखाई
लताफ़त  :  कोमलता
अरसाए  :  मैदान
महशर  :  कयामत, प्रलय
कोहराम  :  कोलाहल
सेहरा बा किनार  :  रेत का किनारा

Tuesday, January 19, 2010

दिल की दिल में

दिल की दिल में न रह जाये यह कहानी कह लो


चाहे  दो  हर्फ़  लिखो  चाहे  ज़बानी  कह  लो




मैंने  मरने  की  दुआ  मांगी थी  वो पूरी न हुई


बस  इसको  मेरे  जीने  की  कहानी  कह  लो




सर  सरे   वक़्त  उड़ा  ले  गई   रूदाद  हयात


वही  अवराक़  जिन्हें  अहदे  जवानी  कह लो




तुमसे  कहने  की  नहीं  बात  मगर कह बैठा


अब  इसे  मेरी  तबियत  की  रवानी कह लो




वही  एक  किस्सा ज़माने  को मेरा याद रहा


वही  एक  बात  जिसे  आज  पुरानी कह लो




हम पे जो बीती है बस उसको रक़म करते हैं


आपबीती  कहो  या  मरसिया  ख़्वानी  कह लो



                             : ख़लीलुर्रहमान "आज़मी"
------------------------------------------

सर सरे वक़्त : आंधी के वक्‍त
रूदाद : कहानी
अवराक़ : प्रष्‍ठ
अहदे जवानी : जवानी का ज़माना
रवानी : प्रवाह
रक़म : लिखना
मरसिया ख़्वानी : शोकगीत पढ़ना


Wednesday, January 6, 2010

कितने मौसम बीत गये हैं


कितने मौसम बीत गये हैं  दुख सुख की तन्हाई में

दर्द की  झील नहीं सूखी  है  आँखों की अंगनाई में


बीती  रातों  के झोंके  आए जब मेरी  अंगनाई में

दिल  के  सौ  सौ  टांके टूटे  एक एक  अंगड़ाई  में


सच सच कहना ऐ दिले नादां बात है क्या रुसवाई में

सेंकड़ों  आँखें  झांक  रही  हैं  क्यों  मेरी  तन्हाई  में


रूप की धूप भी काम न आई, दर्द की लहरें जाग उठीं

दिल  की  चोट  उभर  आई  है  यादों  की  पुरवाई  में


सोते जागते एक एक रग में बिजली सी लहराती है

किसके  बदन  की  ख़ुशबू फैली  आज मेरी  तन्हाई में


अपने जलते सपनों की परछाईं मिली उसमें "उनवान"

जब  भी  झांका  उस  की  ठंडी  आँखों  की  गहराई  में


                                                                      : उनवान चिश्ती
----------------------------------------------------------------------------------------